Vol. No. 144
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August, 2012
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चातुर्मास के पावन अवसर पर धर्म गुरु दिलाएं ये संकल्प
चातुर्मास के पावन अवसर पर हमारे धर्मगुरु प्रतिदिन होने वाले प्रवचनों में उपस्थित जनसमुदाय को कुछ इस तरह के
संकल्प दिलाएं, जिनके अनुकरण से समाज लाभान्वित हो। पुष्करवाणी ग्रुप द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे है कुछ संकल्प
सामाजिक सौहार्द
भ्रूण हत्या (विशेष तौर पर कन्या भ्रूण हत्या)
भ्रष्टाचार पर रोक
नशामुक्ति
बालिका शिक्षा
युवाओं में धर्म जागरण करना
परिवार एकता
बड़ों का आदर सम्मान
पर्यावरण संरक्षण
जल संरक्षण
चारित्रिक मजबूती
Shri Pushpendra Muni, E-Mail : pushpendramuni@gmail.com
आत्म एवं चारित्रिक उत्थान का पर्व: पर्युषण -दिलीप गाँधी, चित्तौड़गढ़
पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है: परि + ऊषण = आत्मा के समीप रहना। धर्म साधना काल चार्तुमास में यह पर्व भाद्रपद द्वादशी से शुरू होकर आठ दिन तक चलता है। अष्टकर्मो की निर्जरा हो, आत्मा को पहचाने नश्वर शरीर के पीछे नहीं दौड़े, यही संदेश देता है- पर्व ‘पर्युषण’। जिस प्रकार उद्योगों में वार्षिक मरम्मत की जाती है। जिससे ब्रेक डाउन दुर्घटना एवं अन्य नुकसान नहीं हों, प्लान्ट बंद ना हो। एहतियात के तौर पर पूर्व नियोजित ढंग से शट डाऊन लिया जाता है। ठीक उसी प्रकार हमारे धर्म गुरुओं एवं संस्कृति ने पूर्व नियोजन करके आत्म जागृति के लिए पर्युषण पर्व में आठ दिन का अपने आस्त्रव कर्मो की निर्जरा हेतु धर्म, ज्ञान, दर्शन, तप एवं चारित्र को ऊँचा उठाकर वर्षभर के लिए पुनः ताजगी प्राप्त करने के लिए पर्युषण पर्व शुभारम्भ किया जाता है। पर्युषण पर्व (Refresh) अधिकतर ‘तप’ पर बल देता है। जिसमें अठाई, बेले, तेले, आयम्बिल आदि उपवास किये जाते है। जमीकंद भोग, रात्रि भोजन निषेध, सामायिक-प्रतिक्रमण सबके लिए सचेत रहकर ‘अनुशासन’ में बँधते हैं। आधुनिक युग भोग-विलास एवं मशीनों का युग है। समय के साथ चलना युग के साथ जीवन यापन करना भी धर्म है, लेकिन जैन कुल में जन्म लेकर धर्म की रक्षा करना और संस्कृति का निर्वहन करना हमारा पहला दायित्व है तपस्या एवं धर्म के साथ-साथ निम्न बिन्दुओं पर भी यदि चिन्तन करके आचरण में उतारे तो भी हर दिन पर्युषण का प्रतिपादन कर सकता है-
1. थाली में एक कण भी झूठा नहीं छोड़े। हमारे देश की आबादी सवा अरब हो गई है, हर व्यक्ति एक-एक कौर झूठा डालता है तो समझों पाँच करोड़ आदमियों को हम भूखा रखता है। जीव हिंसा में भी यह झूठन निमित्त बनता है।
2. वाणी संयम रखे। ‘वाणी’ मधुर, सरस एवं सरल हो, जिससे सुनने वाला आपको अपने दिलो-दिमाग में स्थान दे। ऐसी वाणी मत बोलिये जिससे रिश्तों की डोर टूट जाये, क्रोध जागृत हो जाये।
3. तपस्या करने वाले भाई-बहनों के सम्मान में उपहार, भोज एवं लेन-देन पूर्णतः बन्द होने चाहिए। हमारा तप सम्मान के बदले बेचने के लिए व उपहारों के द्वारा लुटाने के लिए न हो, कर्म काटने के लिए हो। शादियों की तरह तपस्याओं को महंगा नहीं होने दे।
4. अमीरी के अहं को पोषण देने के लिए गरीब का शोषण मत कीजिए।
5. ऊनोदरी तप की शुरूआत कीजिए यदि आप पांच रोटी खाते है तो चार खाइये। एक गाय को दीजिए।
6. समाज में अमीरी का प्रदर्शन करने से बेहतर है किसी स्वधर्मी- स्वजातीय बन्धुओं की मदद करें।
7. पर्युषण पर्व में युवा-बन्धु अधिक जुड़ते हैं, स्थानक जाते है। जिनवाणी सुनते है अतः युवादृष्टि में अध्यात्म का प्रवेश हो ऐसे प्रवचन संतो/सतियों द्वारा दिए जाने चाहिए जिससे युवा अपना चिन्तन बदले।
8. पर्युषण पर्व मनाने का अधिकार हर आत्मा को हैं, किन्तु ओसवाल पहले आचार-विचार से ओसवाल बने चार नियमों का पालन करे तभी वह ओसवाल वंश का होगा- (1) नवकार मन्त्र पर दृढ़ श्र( रखे। (2) मदिरा सेवन का त्यागी (3) मांस भक्षण का त्यागी (4) रात्रि भोजन नहीं करने वाला।
9. सामायिक-स्वाध्याय नियम एवं अनुशासन से करने चाहिए।
10. जल, पेड़-पौधे, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, बाल विवाह, परिवार विघटन, वरिष्ठजन के प्रति सम्मान इन पर भी चिन्तन करे, विवेक पूर्वक व्यवहार करे। जीवन का प्रयोग यदि सफल है तो आत्मा स्वच्छ है।
चार्तुमास में कषायों पर विजय प्राप्त करने के लिए क्रोध को क्षमा भाव से, मान को मृदुता से, माया को सरलता से और लोभ को सन्तोष से धारण करना चाहिए। क्षमा भाव से जीव को चार लाभ मिलते है- मानसिक शान्ति, सब जीवों से मैत्री भाव, भावना की विशु(ि एवं निर्भयता। पर्युषण पर्व की प्रासंगिकता तभी सार्थक है, जब हम हमारे धर्म के मर्म को जीवन में प्रतिदिन आत्मसात करें रिश्तों की मर्यादा समझें, प्रकृति एवं धर्म संस्कृति के अनुसार जीवन यापन करें। यदि हमारा कोई धर्माचार्य है तो उसकी एक विशेषता का हम पालन करे तभी मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा। मेरे विचारों से यदि कोई सहमत नहीं हो तो इस पर्व के उपलक्ष्य में सभी से क्षमा याचना करता हूँ। श्री दिलीप गाँधी, E-Mail : dkgandhi1765@gmail
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